16-11-95  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

‘‘बापदादा की चाहना - डायमण्ड जुबली वर्ष को लगाव मुक्त वर्ष के रूप में मनाओ’’

आज बापदादा सदा दिल से बाप की याद में रहने वाले अपने स्नेही, सहयोगी बच्चों से मिलने आये हैं। जितना बच्चों का स्नेह है उतना बाप का भी स्नेह बच्चों से है। बाप सभी बच्चों को एक जैसा अति स्नेह देते हैं। लेकिन बच्चे अपने-अपने शक्ति अनुसार स्नेह को धारण करते हैं। इसीलिए बाप को भी कहना पड़ता है नम्बरवार याद-प्यार। लेकिन बाप सभी बच्चों को नम्बरवन दिल का प्यार अमृतवेले से लेकर देते हैं। इसलिए अमृतवेला विशेष बच्चों के लिए ही रखा हुआ है। क्योंकि अमृतवेला सारे दिन का आदि समय है। तो जो बच्चे आदि समय पर बाप का स्नेह दिल में धारण कर लेते हैं तो दिल में परमात्म स्नेह समाया हुआ होने के कारण और कोई स्नेह आकर्षित नहीं करता है। अगर अपने स्थिति अनुसार पूरा दिल भर करके दिल में स्नेह नहीं धारण करते, थोड़ा भी खाली है, अधूरा लिया है तो दिल में जगह होने के कारण माया भिन्न-भिन्न रूप से अनेक स्नेह, चाहे व्यक्ति, चाहे वैभव-दोनों रूप में उन स्नेहों में आकर्षित कर लेती है।

कई बच्चे बापदादा से कहते हैं कि हमारे पास अभी तक भी माया क्यों आती है? जब मास्टर सर्वशक्तिमान बन गये तो माया के आने का क्वेश्चन ही नहीं है। लेकिन कारण है कि आदि काल अमृतवेले अपने दिल में परमात्म स्नेह सम्पूर्ण रूप से धारण नहीं करते। अगर कोई भी चीज़ अधूरी भरी हुई है, कहाँ भी खाली है तो हलचल तो होगी ना! बैठते भी हो, उठते भी हो, लक्ष्य भी है और कहते भी हो कि एक बाप, दूसरा न कोई....... यह दिल से कहते हो या मुख से? तो फिर दिल में और आकर्षण का कारण क्या है? ज़रुर कहाँ और व्यक्ति या वैभव की तरफ स्नेह जाता है तब वो आकर्षित करती है। दिल में सम्पूर्ण परमात्म प्यार पूरा भरा हुआ नहीं होता है। आप सोचो-अगर एक हाथ में आपको कोई हीरा देवे और दूसरे हाथ में मिट्टी का गोला देवे तो आपकी आकर्षण कहाँ जायेगी? हीरे में जायेगी, मिट्टी में नहीं! मिट्टी से भी खेलना तो अच्छा होता है ना! तो व्यर्थ संकल्प ये भी क्या है? हीरा है या मिट्टी है? तो मिट्टी से खेलते तो हो ना! आदत पड़ी हुई है इसीलिए! व्यक्ति भी क्या है? मिट्टी है ना! मिट्टी-मिट्टी में मिल जाती है। देखने में आपको बहुत सुन्दर आता है, चाहे सूरत से, चाहे कोई विशेषता से, चाहे कोई गुण से, तो कहते हैं कि और मुझे कोई लगाव नहीं है, स्नेह नहीं है लेकिन इनका ये गुण बहुत अच्छा है। तो गुण का प्रभाव थोड़ा पड़ जाता है या कहते हैं कि इसमें सेवा की विशेषता बहुत है तो सेवा की विशेषता के कारण थोड़ा सा स्नेह है, शब्द नहीं कहेंगे लेकिन अगर विशेष किसी भी व्यक्ति के तरफ या वैभव के तरफ बार-बार संकल्प भी जाता है-ये होता तो बहुत अच्छा.... ये भी आकर्षण है। व्यक्ति के सेवा की विशेषता का दाता कौन? वो व्यक्ति या बाप देता है? कौन देता है? तो व्यक्ति बहुत अच्छा है, अच्छा है वो ठीक है लेकिन जब कोई भी विशेषता को देखते हैं, गुणों को देखते हैं, सेवा को देखते हैं तो दाता को नहीं भूलो। वह व्यक्ति भी लेवता है, दाता नहीं है। बिना बाप का बने उस व्यक्ति में ये सेवा का गुण या विशेषता आ सकती है? या वह विशेषता अज्ञान से ही ले आता है? ईश्वरीय सेवा की विशेषता अज्ञान में नहीं हो सकती। अगर अज्ञान में भी कोई विशेषता या गुण है भी लेकिन ज्ञान में आने के बाद उस गुण वा विशेषता में ज्ञान नहीं भरा तो वो विशेषता वा गुण ज्ञान मार्ग के बाद इतनी सेवा नहीं कर सकता। नेचरल गुण में भी ज्ञान भरना ही पड़ेगा। तो ज्ञान भरने वाला कौन? बाप। तो किसकी देन हुई, दाता कौन? तो आपको लेवता अच्छा लगता है या दाता अच्छा लगता है? तो लेवता के पीछे क्यों भागते हो?

बाप के आगे या दादियों के आगे बहुत मीठा-मीठा बोलते हैं, कहेंगे दादी मेरा कुछ लगाव नहीं, बिल्कुल नहीं, सिर्फ सेवा के कारण थोड़ा सा है। थोड़ा सा कहकर अपने को छुड़ा लेते हैं। लेकिन ये लगाव चाहे गुण का हो, चाहे सेवा का हो लेकिन लगाव आज नहीं तो कल कहाँ ले जायेगा? कोई को तो लगाव पुरानी दुनिया तक भी ले जाता है लेकिन मैजारिटी पुरानी दुनिया तक नहीं जाते हैं, थोड़े जाते हैं। मैजारिटी को लगाव पुरूषार्थ में अलबेलेपन की तरफ ले जाता है। फिर सोचते हैं कि ये तो थोड़ा-बहुत होता ही है फिर बाप को भी समझाने लगते हैं-कहते हैं बाबा आप तो साकार में हो नहीं, ब्रह्मा बाबा भी अव्यक्त हो गया और आप तो हो ही बिन्दी, ज्योति। अभी हम तो साकार में हैं, इतना मोटा-ताजा शरीर है और शरीर से सब करना है, चलना है, तो हम हैं साकार और आप आकार और निराकार हो, अभी साकार में कोई तो चाहिए ना! अच्छा बहुत नहीं, एक तो चाहिए ना! एक भी नहीं चाहिए? देखना बापदादा तो कहते हैं एक चाहिए। नहीं चाहिए? (एक बाबा चाहिए) बाप तो है ही लेकिन कई बार मन में कई बातें आ जाती है और मन भारी हो जाता है, जब तक मन को हल्का नहीं करते हैं तो योग भी नहीं लगता। फिर क्या करें? बाप का भी क्वेश्चन है कि ऐसे टाइम पर क्या करें? मन भारी है और योग लगता नहीं है तो क्या करें? उल्टी नहीं करे, अन्दर ही मचलता रहे? डॉक्टर्स लोग क्या कहते हैं? अगर पेट भारी हो जाये तो उल्टी करके निकालनी चाहिए या अन्दर ही रखनी चाहिए? डॉक्टर्स क्या कहते हैं? उल्टी करनी चाहिए ना? तो डॉक्टर भी कहते हैं उल्टी करनी चाहिए। अच्छा।

ये तो हुआ तन का डॉक्टर और आप सभी मन के डॉक्टर हो। तो तन वाले ने अपना जवाब दिया, अभी मन के डॉक्टर बताओ-अगर मन में कोई उलझन हो तो कहाँ उल्टी करें? बाबा के सामने उल्टी करेंगे! (बाबा के कमरे में जाकर करें) कमरे में उल्टियाँ करके आवें! सोचो! बाप के आगे उल्टी करेंगे? नहीं तो कहाँ करे? कोई स्थान तो बताओ ना? बापदादा तो बच्चों का तरफ लेता है कि उस समय तो कोई चाहिए ज़रुर। (बाबा को सुनायें) अगर बाप सुनता ही नहीं, तो क्या करें? कई बच्चों की कंप्लेंट है ना कि हमने तो बाबा को सुनाया, बाबा ने सुना ही नहीं, जवाब ही नहीं दिया। फिर क्या करें? वास्तव में अगर दिल में परमात्म प्यार, परमात्म शक्तियाँ, परमात्म ज्ञान फुल है, ज़रा भी खाली नहीं है तो कभी भी किसी भी तरफ लगाव या स्नेह जा नहीं सकता।

कई कहते हैं लगाव नहीं है लेकिन सिर्फ अच्छा लगता है तो इसको कौन-सी लाइन कहेंगे? लगाव नहीं है, अच्छा लगता है तो ये क्या है? इतनी छुट्टी दें कि अच्छा भले लगे, लगाव नहीं है, उनसे बैठना, उनसे बात करना, उनसे सेवा कराना वो अच्छा लगता है, तो ये छुट्टी दें? जो समझते हैं थोड़ी-थोड़ी देनी चाहिए, अभी सम्पूर्ण तो बने नहीं हैं, पुरूषार्थ कर रहे हैं, थोड़ी छुट्टी होनी चाहिए! वह हाथ उठायें। अभी हाथ तो उठायेंगे नहीं, क्योंकि शर्म आयेगी ना! लेकिन अगर आप समझते हो कि थोड़ी सी छुट्टी होनी चाहिए तो दादी को प्रायवेट चिटकी लिखकर दे देना। ऐसे नहीं कहना कि दादी पांच मिनट बात करना है, इसमें तो फिर टाइम चाहिए। चिटकी में लिख दो तो बापदादा उनका अच्छा संगठन करेंगे। और ही अच्छा हो जायेगा ना! अच्छा, अभी सब ना कर रहे हैं और सभी का वीडियो निकल रहा है। यदि ना करके फिर करेंगे तो वो कैसेट भेजेंगे कि आपने ना किया था फिर क्यों किया? भेजनी पड़ेगी या सेफ रहेंगे? पक्का या थोड़ा-थोड़ा कच्चा, थोड़ा-थोड़ा पक्का!

उस दिन भी सुनाया कि ये सीज़न डायमण्ड जुबली का आरम्भ करने वाली है तो इस सीज़न में आप लोगों ने तो कांफ्रेंस का, भाषणों का, मेलों का बहुत प्रोग्राम बनाया है लेकिन बापदादा विशेष इस डायमण्ड जुबली में एक प्रोग्राम बनाना चाहते हैं, तैयार हो?

बापदादा चाहते हैं कि डायमण्ड जुबली में जिस बच्चे को देखें-चाहे दो वर्ष का है, चाहे साठ वर्ष का है, चाहे दो मास का है, चाहे टीचर है, चाहे स्टूडेण्ट है, चाहे समर्पण है, चाहे प्रवृत्ति में है लेकिन डायमण्ड जुबली के वर्ष में, ये जो बाप के साथ आप सबने भी पान का बीड़ा उठाया है कि पवित्रता द्वारा हम प्रकृति को भी पावन करेंगे। तो ये संकल्प है या बाप को करना है? बाप के साथी हैं? थोड़ा सा हाथ ऐसे रख देते हैं, चतुराई करते हैं। ऐसे नहीं करना। तो बापदादा चाहते हैं कि सारे विश्व में हर एक बच्चा लगाव मुक्त बने - चाहे साधनों से, चाहे व्यक्ति से। साधनों से भी लगाव नहीं। यूज़ करना और चीज़ है और लगाव अलग चीज़ है। तो बापदादा लगाव-मुक्त वर्ष मनाने चाहते हैं। ये फंक्शन करना चाहते हैं। तो इस फंक्शन में आप लोग साथी बनेंगे? फिर ये तो नहीं कहेंगे कि यह कारण हो गया! कोई भी कारण हो, चाहे हिमालय का पहाड़ भी गिर जाये, लेकिन आप उस हिमालय के पहाड़ से भी किनारे निकल आओ। इतनी हिम्मत है? पहले टीचर्स बोलो। स्टूडेण्ट खुश होते हैं कि हमारी टीचर्स को बापदादा कहता है। और टीचर्स तो सहयोग के लिए सदा साथी हैं ही ना। क्योंकि आगे चलकर आजकल की दुनिया में ये सभी जो भी अपने को धर्म आत्मा, महान आत्मा कहलाते हैं उन्हों की भी पवित्रता के फाउण्डेशन हिलेंगे। और ऐसे टाइम पर आदि में जब ब्रह्मा बाप निमित्त बने तो गाली किस बात के कारण खाई? पवित्रता के कारण ना। नहीं तो कोई बड़े आयु वाले की भी हिम्मत नहीं थी जो ब्रह्मा बाप के पास्ट लाइफ में भी कोई अंगुली उठाए। ऐसी पर्सनालिटी थी। लेकिन पवित्रता के कारण गाली खानी पड़ी। और इस परमात्म ज्ञान की नवीनता ही पवित्रता है। फ़लक से कहते हैं ना कि आग-कापूस इकठ्ठा रहते भी आग नहीं लग सकती। चैलेन्ज है ना! जो युगल हैं वो हाथ उठाओ। तो आप सभी युगलों की ये चैलेन्ज है या थोड़ी-थोड़ी आग लगेगी फिर बुझा देंगे? वर्ल्ड को चैलेन्ज है ना! सारे विश्व को आप लोग भाषणों में कहते हो कि पवित्रता के बिना योगी तू आत्मा, ज्ञानी तू आत्मा बन ही नहीं सकते। ये आप सबकी चैलेन्ज है ना? जो युगल समझते हैं कि मेरी ये चैलेन्ज है वो हाथ उठाओ।अच्छा है - एक ही ग्रुप में साथी तो बहुत हैं। तो डायमण्ड जुबली में क्या करेंगे? लगाव मुक्त। क्रोधमुक्त का किया ना। थोड़ा-थोड़ा क्रोध तो बापदादा ने भी कइयों में देखा, लेकिन इस बारी थोड़ा का छोड़ दिया। फिर भी चाहे देश, चाहे विदेश में जिन्होंने अटेन्शन रखा और सम्पूर्ण रूप से क्रोध मुक्त जीवन का प्रैक्टिकल में अनुभव किया, करके दिखाया, उन सबको बापदादा पद्मगुणा से भी ज्यादा मुबारक देते हैं। क्योंकि इस समय चाहे विदेश वाले, चाहे देश वाले, सबके बुद्धि रूपी टेलीफोन यहाँ मधुबन में लगे हुए हैं। अभी सबका कनेक्शन मधुबन में है। तो सभी ने यह अनुभव तो किया ही होगा कि जिन्हों ने अच्छी तरह से दृढ़ संकल्प किया - उन्हों को बापदादा की तरफ से विशेष एक्स्ट्रा मदद भी मिली है। तो ऐसे नहीं समझना कि एक साल तो क्रोध को खत्म किया, अभी तो फ्री हैं। नहीं। अगर सम्पूर्ण लगाव मुक्त अनुभव करेंगे तो क्रोध मुक्त ऑटोमेटिकली हो जायेंगे। क्यों? क्रोध भी क्यों होता है? जिस बात को, जिस चीज़ को आप चाहते हो और वो पूर्ण नहीं होता है या प्राप्त नहीं होता है तो क्रोध आता है ना! क्रोध का कारण - आपके जो संकल्प हैं वो चाहे उल्टे हों, चाहे सुल्टे हों लेकिन पूर्ण नहीं होंगे - तो क्रोध आयेगा। मानो आप चाहते हो कि कांफ्रेंस होती है, फंक्शन होते हैं तो उसमें हमारा भी पार्ट होना चाहिए। आख़िर भी हम लोगों को कब चांस मिलेगा? आपकी इच्छा है और आप इशारा भी करते हैं लेकिन आपको चांस नहीं मिलता है तो उस समय चिड़चिड़ापन आता है कि नहीं आता है? चलो, महा क्रोध नहीं भी करो, लेकिन जिसने ना की उनके प्रति व्यर्थ संकल्प भी चलेंगे ना? तो वह पवित्रता तो नहीं हुई। ऑफर करना, विचार देना इसके लिए छुट्टी है लेकिन विचार के पीछे उस विचार को इच्छा के रूप में बदली नहीं करो। जब संकल्प इच्छा के रूप में बदलता है तब चिड़चिड़ापन भी आता है, मुख से भी क्रोध होता है वा हाथ पांव भी चलता है। हाथ पांव चलाना-वह हुआ महाक्रोध। लेकिन निस्वार्थ होकर विचार दो, स्वार्थ रखकर नहीं कि मैंने कहा तो होना ही चाहिए-ये नहीं सोचो। ऑफर भले करो, ये रांग नहीं है। लेकिन क्यों-क्या में नहीं जाओ। नहीं तो ईर्ष्या, घृणा - ये एक-एक साथी आता है। इसलिए अगर पवित्रता का नियम पक्का किया, लगाव मुक्त हो गये तो यह भी लगाव नहीं रखेंगे कि होना ही चाहिए। होना ही चाहिए, नहीं। ऑफर किया ठीक, आपकी निस्वार्थ ऑफर जल्दी पहुँचेगी। स्वार्थ या ईर्ष्या के वश ऑफर और क्रोध पैदा करेगी। तो टीचर्स क्या करेंगी? 100 परसेन्ट लगाव मुक्त। बोलो हाँ या ना? फॉरेनर्स बोलो, हाँ जी।

बापदादा को तो अपने टी.वी. में बहुत नई-नई बातें दिखाई देती हैं। अभी 60 वर्ष पूरे हो रहे हैं तो अब तक जो बातें नहीं हुई थी वो नये-नये खेल भी बहुत दिखाई देते हैं। इस सीज़न में एक-एक करके वर्णन करेंगे। लेकिन याद रखना अगर किसी के प्रति भी स्वप्न मात्र भी लगाव हो, स्वार्थ हो तो स्वप्न में भी समाप्त कर देना। कई कहते हैं कि हम कर्म में नहीं आते लेकिन स्वप्न आते हैं। लेकिन अगर कोई व्यर्थ वा विकारी स्वप्न, लगाव का स्वप्न आता है तो अवश्य सोने के समय आप अलबेलेपन में सोये। कई कहते हैं कि सारे दिन में मेरा कोई संकल्प तो चला ही नहीं, कुछ हुआ ही नहीं फिर भी स्वप्न आ गया। तो चेक करो-सोने समय बापदादा को सारे दिन का पोतामेल देकर, खाली बुद्धि हो करके नींद की? ऐसे नहीं कि थके हुए आये और बिस्तर पर गये और गये -ये अलबेलापन है। चाहे विकर्म नहीं किया और संकल्प भी नहीं किया लेकिन ये अलबेलेपन की सज़ा है। क्योंकि बाप का फरमान है कि सोते समय सदा अपने बुद्धि को क्लीयर करो, चाहे अच्छा, चाहे बुरा, सब बाप के हवाले करो और अपने बुद्धि को खाली करो। दे दिया बाप को और बाप के साथ सो जाओ, अकेले नहीं। अकेले सोते हो ना तभी स्वप्न आते हैं। अगर बाप के साथ सोओ तो कभी ऐसे स्वप्न भी नहीं आ सकते। लेकिन फरमान को नहीं मानते हो तो फरमान के बदले अरमान मिलता है। सुबह को उठकर के दिल में अरमान होता है ना कि मेरी पवित्रता स्वप्न में खत्म हो गई। ये कितना अरमान है! कारण है अलबेलापन। तो अलबेले नहीं बनो। जैसे आया वैसे यहाँ वहाँ की बातें करते-करते सो जाओ, क्योंकि समाचार तो बहुत होते हैं और दिलचश्प समाचार तो व्यर्थ ही होते हैं। कई कहते हैं-और तो टाइम मिलता ही नहीं, जब साथ में एक कमरे में जाते हैं तो लेन-देन करते हैं। लेकिन कभी भी व्यर्थ बातों का वर्णन करते-करते सोना नहीं, ये अलबेलापन है। ये फरमान को उल्लंघन करना है। अगर और टाइम नहीं है और जरूरी बात है तो सोने वाले कमरे में नहीं, लेकिन कमरे के बाहर दो सेकण्ड में एक-दो को सुनाओ, सोते-सोते नहीं सुनाओ। कई बच्चों की तो आदत है, बापदादा तो सभी को देखते हैं ना कि सोते कैसे हैं? एक सेकण्ड में बापदादा सारे विश्व का चक्कर लगाते हैं, और टी.वी. से देखते हैं कि सो कैसे रहे हैं, बात कैसे कर रहे हैं ... सब बापदादा देखते हैं। बापदादा को तो एक सेकण्ड लगता है, ज्यादा टाइम नहीं लगता। हर एक सेन्टर, हर एक प्रवृत्ति वाले सबका चक्कर लगाते हैं। ऐसे नहीं सिर्फ सेन्टर का, आपके घरों का भी टी.वी. में आता है। तो जब आदि अर्थात् अमृतवेला और अन्त अर्थात् सोने का समय अच्छा होगा तो मध्य स्वत: ही ठीक होगा। समझा? और बातें करते-करते कई तो बारह साढ़े बारह भी बजा देते हैं। मस्त होते हैं, उनको टाइम का पता ही नहीं। और फिर अमृतवेले उठकर बैठते हैं तो आधा समय निद्रालोक में और आधा समय योग में। क्योंकि जो अलबेले होकर सोये तो अमृतवेला भी तो अलबेला होगा ना! ऐसे नहीं समझना कि हमको तो कोई देखता ही नहीं है। बापदादा देखता है। यह निद्रा भी बहुत शान्ति वा सुख देती है, इसीलिए मिक्स हो जाता है। अगर पूछेंगे तो कहेंगे-नहीं, मैं बहुत शान्ति का अनुभव कर रहा था। देखो, नींद को भी आराम कहा जाता है। अगर कोई बीमार भी होता है तो डॉक्टर लोग कहते हैं - आराम करो। आराम क्या करो? नींद करो टाइम पर। तो निद्रा भी आराम देने वाली है। फ़्रेश तो करती है ना। तो नींद से फ़्रेश होकर उठते हैं ना तो कहते हैं आज (योग में) बहुत फ़्रेश हो गये। अच्छा!

सभी दूर-दूर से आये हैं। जो इस ग्रुप में पहली बारी आये हैं वो हाथ उठाओ। जो छोटे बच्चे होते हैं ना वो बड़ों से और ही प्यारे होते हैं। लेकिन जो नये-नये आये हो वो मेकप करना। जो बड़ों ने 10 साल में किया वो आप 10 दिन में करना। और कर सकते हो क्योंकि बापदादा समझते हैं कि जब नये नये आते हैं ना तो उमंग-उत्साह बहुत होता है और जितने पुराने होते हैं तो..... समझ गये पुराने! इसलिए कहने की जरूरत क्या है! सभी नये, चाहे कुमारियाँ हैं, चाहे कुमार हैं, चाहे प्रवृत्ति वाले हैं, प्रवृत्ति वालों को तो इन सभी महात्माओं को चरणों में झुकाना है। सब आपके गुण गायेंगे कि ये प्रवृत्ति में रहते भी निर्विघ्न पवित्रता के बल से आगे बढ़ रहे हैं। एक दिन आयेगा जो आप सबके आगे ये महात्मायें झुकेंगे। लेकिन अपना वायदा याद रखना-लगाव मुक्त रहना। अच्छा।

टीचर्स से

टीचर्स तो हर बात के निमित्त है। हो ना निमित्त-ये बात पक्की है ना! टीचर्स का अर्थ ही है निमित्त। तो अभी भी इस वर्ष - लगाव मुक्त बनने में टीचर्स नम्बर वन निमित्त बनें। ठीक है! पक्का! ताली बजाओ। बापदादा भी आप टीचर्स के प्रति विशेष ताली बजाता है। अच्छा।

कुमारियाँ

कुमारियाँ हाथ उठाओ। कुमारियाँ क्या करेंगी? कुमारियों को अपने जीवन का स्वयं, स्वयं का मित्र बन निर्बन्धन बनाने में नम्बरवन जाना चाहिए। इन कुमारियों की लिस्ट इकट्ठी करो फिर देखेंगे कि सचमुच कितनी निर्बन्धन बनती हैं? कुमारयाँ अगर समझती हो कि हम निर्बन्धन होकर सेवा में निमित्त बनेंगी तो हाथ उठाओ। इन्हों की ट्रेनिंग रखेंगे। अभी तो ज्ञान सरोवर में भी रखते हैं। तो कुमारियाँ क्या बनेंगी? निर्बन्धन। न मन का बन्धन, न सम्बन्ध का बन्धन। डबल बन्धन से मुक्त। अच्छा।

कुमार

कुमार हाथ उठाओ। कुमार तो बहुत हैं। तो कुमार क्या विशेषता दिखायेंगे? कुमार ऐसे अपने को तैयार करो-चाहे अपने-अपने स्थान पर हो लेकिन जहाँ भी हो वहाँ अपने को ऐसा तैयार करो जो आपका 400-500 का ग्रुप बना करके गवर्नमेंट के इन बड़े लोगों से मिलायें कि देखो कि ये इतने यूथ विश्व की सेवा के लिए या भारत की सेवा के लिए डिस्ट्रक्शन का काम न कर, कन्स्ट्रक्शन का काम कर रहे हैं। तो ऐसा ग्रुप बनाओ। तो कितने टाइम में अपने को तैयार करेंगे? क्योंकि गवर्नमेंट यूथ को आगे रखना चाहती है लेकिन उनको ऐसे यूथ मिलते नहीं हैं और बाप के पास तो हैं ना! तो ऑलमाइटी गवर्नमेंट इस हलचल वाली गवर्नमेंट के आगे एक प्रैक्टिकल मिसाल दिखा सकती है। लेकिन कच्चे नहीं होने चाहिए। ऐसा नहीं, आप कहो हम तो बहुत अच्छे चलते हैं और आपके साथी जो हैं वो रिपोर्ट करें कि नहीं, ये तो ऐसे ही कहता है। ऐसे नहीं। पवित्रता के लिए बिगड़ते हैं वो बात अलग है लेकिन दिव्यगुणों की धारणा में आपका प्रभाव घर वालों के ऊपर पड़ना चाहिए। समझा? तो जो समझते हैं हम डायमण्ड जुबली तक तैयार हो जायेंगे वो हाथ उठाओ। अभी थोड़े कम हो गये। अच्छा, टीचर्स रिपोर्ट देना इस डायमण्ड जुबली के बीच में, एण्ड में नहीं। गवर्नमेंट को यूथ दिखायें। अभी तो 8 मास हैं। तो आठ मास ठीक है।

अधरकुमार-कुमारियाँ

अधरकुमार-कुमारियाँ क्या करेंगे? वैसे प्रवृत्ति वालों को एक नया सबूत देना चाहिए। जो घर में हैं, आपकी फैमली है, किसके चार बच्चे होंगे, किसके आठ होंगे, किसके दो होंगे, जो भी हैं लेकिन हर प्रवृत्ति वाले अपने बच्चों को ऐसे मूल्य सिखाकर तैयार करें जो बच्चों का ऐसा धारणा वाला ग्रुप सैम्पुल हो, जो कॉलेज-स्कूल के पढ़े हैं, उनके आगे उन बच्चों को दिखायें। प्रवृत्ति वालों को अपने बच्चों के ग्रुप को तैयार करना चाहिए। जो किसी से भी रिपोर्ट पूछें चाहे उसके टीचर्स से पूछें, चाहे उसके मोहल्ले के दोस्तों से पूछे, सब उसकी रिपोर्ट अच्छी देवें। ऐसे नहीं - आप कहो बहुत अच्छे हैं और टीचर कहे कि ये तो पढ़ते ही नहीं हैं। ऐसे नहीं। तो प्रवृत्ति वालों को ऐसे बच्चे तैयार करने चाहिए। ज्ञान में आते हैं, अच्छे भी हैं लेकिन उन्हों को थोड़ा और अटेन्शन दिलाकर ऐसा ग्रुप तैयार करो। तो एज्युकेशन का सर्टिफिकेट वो बच्चे हो जायेंगे। नहीं तो एज्युकेशन वाले कहते हैं ना आप सर्टिफिकेट नहीं देते हो। तो आप कहो सर्टिफिकेट देखो ये चैतन्य है। आप कागज का सर्टिफिकेट देते हो, हम आपको चैतन्य का सर्टिफिकेट दिखाते हैं। समझा? ऐसे ही डायमण्ड जुबली नहीं मनानी है। डायमण्ड जुबली में कुछ नवीनता दिखानी है। जो गवर्नमेंट की आँख खुले कि ये क्या है! किसी कार्य में वो ना कर नहीं सके। और ही ऑफर करें, जैसे यहाँ जब महामण्डलेश्वर आये थे तो उन्हों ने क्या ऑफर की? कि हमारे आश्रम ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारियाँ चलायें। ऐसे मांगनी की थी ना! तो सभी डिपार्टमेन्ट ऑफर करें कि हमारे डिपार्टमेन्ट में आप लोग ही कर सकते हैं। ऐसा प्रैक्टिकल स्वरूप करना - ये है डायमण्ड जुबली। लेकिन पहला वायदा याद है? क्या बनना है? (लगाव मुक्त) तभी ये सभी हो सकता है। अभी भी बच्चे को मारते रहेंगे तो बच्चा कैसे अच्छा होगा। और आपस में कमज़ोर होते रहेंगे तो महात्मा कैसे चरणों में आयेंगे। जितना-जितना पवित्रता के पिल्लर को पक्का करेंगे उतना-उतना ये पवित्रता का पिल्लर लाइट हाउस का काम करेगा। अच्छा।

डबल विदेशी

डबल विदेशियों में बापदादा को उसमें भी विशेष ब्रह्मा बाप को डबल प्यार है। क्यों डबल प्यार है बताओ? समझते हो डबल प्यार है? क्यों डबल प्यार है? ( लौकिक-अलौकिक डबल काम करते हैं) अच्छा जवाब दिया। लेकिन और भी है, ब्रह्मा बाबा को डबल विदेशियों से विशेष प्यार इसलिए है कि ब्रह्मा बाप हर कार्य में क्विक एक्ज़ाम्पल स्वयं भी रहे और बच्चों को भी बनाया तो डबल विदेशी आते ही कोर्स किया, थोड़ा-सा पक्के हुए और सेन्टर खोल देते हैं। ऐसे करते हो ना? इन्हों की तो बहुत ट्रेनिंग होती है, लेकिन डबल विदेशी सेवा में क्विक एक्ज़ाम्पल हैं। तो ब्रह्मा बाबा को ऐसे बच्चों का बहुत समय से आव्हान था कि ऐसे बच्चे निकलें। तो डबल विदेशी सेवा में ज्यादा टाइम नहीं लगाते। जल्दी लग जाते हैं। कितना भी बिज़ी होते हुए भी सेवा का शौक अच्छा रहता है। अभी भी ये म्यूजियम बनाने के लिए आये हैं। (ज्ञान सरोवर में 5 डबल विदेशी भाई-बहिनें म्यूजियम बना रहे हैं) देखो डबल विदेशियों की विशेषता है तब तो विदेश से खास आप लोगों को बुलाया है। विशेषता तो है ना! ये पूरा ग्रुप अच्छा है। देखो, विशेष आत्मायें हो गये ना, विशेष कार्य के लिए आपको बुलाया गया तो विशेष आत्मायें हो गये। वैसे बापदादा को तो अच्छे लगते ही हो। शिव बाबा को भी अच्छे लगते हो लेकिन ब्राह्मण परिवार को भी अच्छे लगते हो। आप लोगों को देखते हैं ना तो यहाँ भारत वालों को भी नशा रहता है कि देखो हमारा सिर्फ भारत में नहीं, विश्व में है। तो सभी के सिकीलधे हो। अच्छा।

म्यूजियम बनाने वाले ग्रुप को बापदादा ने सम्मुख बुलाया

ये भी ड्रामानुसार विशेष वरदाता का वरदान मिलता है। कोई भी आर्ट है तो आर्ट वरदान समझकर कार्य में लगाओ। ये बाप का वरदान ड्रामानुसार विशेष निमित्त बना है तो उससे कार्य सहज और सफल हुआ ही पड़ा है। ऐसे है ना? तो विशेष वरदानी आत्मायें हैं, उसको उसी विशेषता से कार्य में लगाते रहो। बाप का वरदान है - यह सदा स्मृति में रहे। तो आपके सिर्फ हाथ काम नहीं करेंगे लेकिन बाप की शक्ति आपके हाथों के साथ काम करेगी। बहुत अच्छा है। अच्छा।

अहमदाबाद - महादेव नगर, सेवाकेन्द्र के उद्घाटन के अवसर पर जिन 19 कुमारियों का समर्पण समारोह मनाया गया, वे सब बापदादा से मिलने मधुबन में आई हैं, उन्हें बापदादा ने सम्मुख बुलाया:- देखो, कुमारियों की वैसे भी महिमा है। भक्ति मार्ग में आप सभी ने कुमारियों के चरण भी धोये होंगे। पूजा भी की होगी और अभी यही कुमारियाँ आप सभी को परमात्म मिलन और परमात्म वर्से के अधिकारी बना रही हैं। सभी कुमारियाँ पक्की हो? फोटो तो निकला हुआ है। कोई कच्चा तो नहीं? कोई पुरानी दुनिया में तो नहीं चले जायेंगे। पक्के हैं! अच्छा।

चारों ओर के दिल में समाये हुए बापदादा के सिकीलधे श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बाप के हर एक फरमान मानने से, स्वयं का और औरों का भी अरमान समर्पित कराने वाले, सदा पवित्रता के पिल्लर को मज़बूत बनाने वाले और पवित्रता की लाइट, लाइट हाउस बन फैलाने वाले विशेष आत्माओं को, सदा स्वयं को लगावमुक्त बनाने वाले बाप के समीप आने वाले, रहने वाले सभी बच्चों को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।

विदेश में रहने वाले चारों ओर के बच्चों को बापदादा का विशेष याद-प्यार क्योंकि वो यादप्यार के पत्र सदा ही भेजते रहते हैं। जिन्हों ने पत्र भेजा है उन्हों को भी विशेष याद और जिन्हों ने दिल से याद प्यार भेजा है उन्हों को भी विशेष यादप्यार।